Sanjay Mishra: ढाबे पर बेचे मैगी-ऑमलेट, पहाड़ों पर बिताया जीवन और फिर ..

संजय मिश्रा सिने जगत का एक जाना-पहचाना नाम हैं। फिल्म ‘ओ डार्लिंग ये है इंडिया’ से फिल्मी करियर की शरुआत करने वाले संजय बेजोड़ कलाकार हैं। उन्हें 1998 में आई फिल्म 'सत्या' से असली पहचान मिली। अपने 26 साल के करियर में संजय ने 150 से अधिक फिल्मों में काम किया हैं। ना सिर्फ हिंदी बल्कि क्षेत्रीय भाषाओँ की फिल्मों में संजय की अच्छी पकड़ हैं। फिल्मी दुनिया में शानो-शौकत मिलने के बाबजूद संजय विवादों की दुनिया से दूर ही रहते हैं।
मौत को जब करीब से देखा
एक इंटरव्यू के दौरान मिश्रा ने बताया था कि एक बार वह काफी बीमार हो गए थे। जांच में पता चला कि पेट में इंफेक्शन हैं। उस दौर में हालत यह हो गई थी कि वह मृत्यु शय्या पर चले गए थे। संजय बताते है कि ऐसे कठिन समय में उन्हें उनके पिता का साथ मिला लेकिन कुछ समय में भी वे भी अलविदा कह गए। जिसके बाद उन्होंने चकाचौंध की दुनिया छोड़ काशी जाकर साधा जीवन जीने की ठान ली थी। वह उस समय पहाड़ों पर कुदरत की गोद में चले गए थे।
ढाबे पर बेचे थे मैगी-ऑमलेट
संजय बताते है कि जिंदगी के एक दौर में वह मां गंगा की शरण में गंगोत्री जा पहुंचे और पहाड़ों का रुख किया। उस समय अपना पेट पालने के लिए उन्होंने गंगा नदी के किनारे एक बूढ़े आदमी के साथ ढाबे पर मैगी और ऑमलेट बनाने का काम किया। साथ ही रोज 50 कप धोने के 150 रुपये मेहनताना मिला।
रोहित शेट्टी ने कराई वापसी
अभिनेता के मुताबिक ढाबे पर काम करने के दौरान लोग उन्हें पहचानने लगे थे। साथ ही वहां आकर सेल्फी लेने लगे। कुछ समय बाद डायरेक्टर रोहित शेट्टी ने फिल्म 'ऑल द बेस्ट ' के लिए उनसे बातचीत की। जिसके बाद उन्होंने फिर से फिल्मों में वापसी की ठानी और करियर में चार चांद लग गए।