क्या एकता कपूर ने भारतीय टीवी इंडस्ट्री को बर्बाद कर दिया? वायरल रेडिट पोस्ट से छिड़ी गरमागरम बहस

PC: Asianet Newsable

भारतीय टेलीविजन की सबसे प्रभावशाली हस्तियों में से एक, एकता कपूर, को लेकर ऑनलाइन बहस की एक नई लहर चल पड़ी है। 1990 के दशक के अंत और 2000 के दशक की शुरुआत में छोटे पर्दे पर क्रांति लाने का श्रेय अक्सर कपूर को दिया जाता है। उनके लंबे समय से चल रहे धारावाहिक, जैसे "क्योंकि सास भी कभी बहू थी" और "कहानी घर घर की" आज भी एक माइल स्टोन के समान हैं। लेकिन क्या ये भारतीय टेलीविजन के रचनात्मक विकास में बाधा डालने के लिए भी ज़िम्मेदार थे?

नेटिज़न्स की प्रतिक्रिया

कुछ लोगों ने तो और भी आगे बढ़कर उनके कथानकों के सामाजिक निहितार्थों पर प्रकाश डाला। एक टिप्पणीकार ने लिखा, "उन्होंने महिलाओं के साथ बुरा व्यवहार किया," और बताया कि कैसे महिला पात्रों को अक्सर "संस्कारी, बलि का बकरा" बना दिया जाता था, जो बड़ों के दुर्व्यवहार को आशीर्वाद समझती थीं। आलोचकों का तर्क है कि इस तरह के चित्रण ने प्रतिगामी रूढ़िवादिता को मज़बूत किया और मज़बूत, स्वतंत्र आवाज़ों को दरकिनार किया।

साथ ही, समर्थकों का कहना है कि कपूर के शो उस समय के मध्यमवर्गीय परिवारों से गहराई से जुड़े थे और सांस्कृतिक मूल्यों और रीति-रिवाजों को प्रतिबिंबित करने वाला मनोरंजन प्रदान करते थे। वे इस बात पर ज़ोर देते हैं कि असली मुद्दा उनकी सफलता में नहीं, बल्कि इस बात में है कि कैसे टेलीविज़न चैनलों ने उनके फ़ॉर्मूले की लगातार नकल की, जिससे प्रयोग के लिए बहुत कम जगह बची।

यह विभाजन अभी भी गहरा है: क्या एकता कपूर एक दूरदर्शी थीं जिन्होंने भारत की सबसे पहचानी जाने वाली टीवी संस्कृति का निर्माण किया, या एक ऐसी ट्रेंडसेटर जिनके फ़ॉर्मूले ने नवाचार का गला घोंट दिया और प्रतिगामी रूढ़ियों को कायम रखा? फ़िलहाल, उनकी विरासत का जश्न और आलोचना दोनों जारी है।