राजस्थान चुनाव: 2018 में 18 में से सिर्फ 2 सीटों पर मिली थी जीत, अलवर-भरतपुर क्यों बने बीजेपी के लिए चुनौती

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राजस्थान चुनाव: राजस्थान विधानसभा चुनाव में अलवर और भरतपुर जिले की 18 विधानसभा सीटें अहम भूमिका निभाती हैं. 2018 में दोनों जिलों से बीजेपी का सफाया हो गया. तो 2013 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी को बड़ी जीत मिली. इस बार बीजेपी और कांग्रेस दोनों ही सत्ता में आने की कोशिश में हैं.


राजस्थान चुनाव: राजस्थान विधानसभा चुनाव में अलवर और भरतपुर जिले की 18 विधानसभा सीटें अहम भूमिका निभाती हैं. 2018 में दोनों जिलों से बीजेपी का सफाया हो गया. तो 2013 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी को बड़ी जीत मिली. इस बार सत्ता में आने के लिए बीजेपी और कांग्रेस दोनों जिलों की 18 विधानसभा सीटों पर पूरा जोर लगा रही हैं और जीत के लिए हर संभव कोशिश की जा रही है. क्योंकि दोनों जिलों पर उनका ही कब्जा है. राज्य में सरकार भी उसी पार्टी की बनी है.


राजस्थान की सत्ता में अलवर और भरतपुर जिले अहम भूमिका निभाते हैं. दोनों जिलों में जिस भी पार्टी को बढ़त मिलेगी. राज्य में सरकार उसी पार्टी की बनती है. 2003 में बीजेपी को यहां से बढ़त मिली. इसलिए राज्य में बीजेपी की सरकार बनी. 2018 में कांग्रेस को बढ़त मिली तो राज्य में कांग्रेस की सरकार बनी. इसलिए दोनों पार्टियों ने पूरी ताकत झोंक दी है.


अलवर जिले में 20 वर्षों में परिणाम
2003 के विधानसभा चुनाव में अलवर जिले की 11 विधानसभा सीटों में से कांग्रेस को 7 और बीजेपी को तीन सीटों से संतोष करना पड़ा था. एक सीट निर्दलीय के खाते में गई. तो वहीं 2008 के विधानसभा चुनाव में नतीजे इसके उलट आए. इस बार बीजेपी को 7 सीटें मिलीं और कांग्रेस को तीन सीटों से संतोष करना पड़ा. एक सीट समाजवादी पार्टी के खाते में गई. 2013 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी और कांग्रेस ने हर बार इस परंपरा को तोड़ा. इस चुनाव में बीजेपी ने अपना दबदबा कायम रखा. बीजेपी को 9 सीटें मिलीं जबकि कांग्रेस को एक सीट से संतोष करना पड़ा. एक सीट एनपीपी के खाते में गई. 2018 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने नतीजे पलटते हुए बीजेपी को दो सीटों पर हरा दिया. कांग्रेस को जहां पांच सीटें मिलीं, वहीं दो सीटें बसपा के खाते में और दो सीटें निर्दलीयों के खाते में गईं।


भरतपुर जिले में बीजेपी का सूपड़ा साफ
इसी तरह अगर भरतपुर जिले की बात करें तो 2013 के विधानसभा चुनाव में जिले की 7 विधानसभा सीटों में से 6 पर बीजेपी के उम्मीदवारों ने जीत हासिल की थी. एक सीट कांग्रेस के खाते में गई. तो 2018 के विधानसभा चुनाव में 7 में से चार सीटें कांग्रेस के खाते में गईं. एक सीट पर कांग्रेस के राष्ट्रीय लोक दल संगठन आरएलडी ने कब्जा कर लिया. तो वहीं बसपा ने दो सीटों पर जीत दर्ज की. 2018 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी की हार हुई थी. यहां जातीय समीकरण हावी है. प्रत्येक विधानसभा सीट के लिए अलग-अलग चुनाव होते हैं। इसलिए बीजेपी और कांग्रेस पार्टियों की ओर से खास प्लान तैयार किया जा रहा है. सत्ता पर काबिज होने के लिए दोनों पार्टियां अलवर-भरतपुर जिले की सभी विधानसभा सीटें जीतने का दावा कर रही हैं. इसके लिए पार्टियों के विधायक नेता जनसंपर्क कर रहे हैं. इसलिए पार्टी आलाकमान की ओर से भी रणनीति पर काम किया जा रहा है.

निर्दलीय और बसपा विधायकों की मदद से बनी सरकार
2018 के विधानसभा चुनाव में भले ही कांग्रेस ने पांच सीटें जीतीं. लेकिन पूरे 5 साल तक उन्हें जिले के नौ विधायकों का समर्थन हासिल था. चुनाव में बसपा से जीते दो विधायक कांग्रेस में शामिल हो गए. दोनों निर्दलीय विधायकों ने भी कांग्रेस को अपना समर्थन दिया. इसलिए प्रदेश में कांग्रेस की सरकार बनाने में अलवर के विधायकों की अहम भूमिका रही. लेकिन 2023 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के लिए राह आसान नहीं दिख रही है. अभी तक पार्टी ने केवल चार सीटों पर ही उम्मीदवारों की घोषणा की है.

भरतपुर जाट बहुल क्षेत्र है
भरतपुर जिला जाट बाहुल्य क्षेत्र है। इस जिले में करीब 80 हजार जाट हैं. पिछले 40 सालों से यहां ब्राह्मण और वैश्य समुदाय के लोग विधायक बनते रहे हैं. जाट समुदाय टिकट की मांग कर रहा है. 2013 के विधानसभा चुनाव में विश्वेंद्र सिंह ने बीजेपी के दिगंबर सिंह को हराया और 2018 के चुनाव में उन्होंने दिगंबर सिंह के बेटे डॉ शैलेश सिंह को हराया. इसलिए विश्वेंद्र सिंह का भरतपुर क्षेत्र में हमेशा दबदबा रहा है. हर विधानसभा सीट पर अलग तरह का मुकाबला है.

राजस्थान चुनाव: 2018 में 18 में से सिर्फ 2 सीटों पर मिली थी जीत, अलवर-भरतपुर क्यों बने बीजेपी के लिए चुनौती
बीजेपी और कांग्रेस के लिए अलवर-भरतपुर की 18 में से पांच सीटें चुनौती बनी हुई हैं. इसके पीछे मुख्य वजह सही उम्मीदवारों को टिकट नहीं मिलना और पुराने विधायकों के प्रति एंटीइनकंबेंसी मानी जा रही है. पिछले चुनाव में बीजेपी को अलवर जिले में सिर्फ 2 सीटें मिली थीं, लेकिन भरतपुर में एक भी सीट नहीं जीत पाई थी.