Mahashivratri 2025: महाकाल मंदिर के ये रहस्य कर देंगे आपको भी हैरान, इसलिए ही दुनिया होती हैं यहां पर नतमस्तक

इंटरनेट डेस्क। आज पूरे देशभर में महाशिवरात्रि का महापर्व मनाया जा रहा हैं। हर कोई भोलेनाथ की पूजा करने में लगा है। ऐसे में देश के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक महाकालेश्वर में पूजा का दौर चल रहा है। लेकिन आज हम इस मंदिर से जुड़ी अनेक मान्यताएं और परंपराएं है उनके बारे में जानने कोशिश करेंगे। इतना ही नहीं ये मंदिर अपने अंदर कईं रहस्य समेटे हैं, जिनके बारे में भी हम जानने की कोशिश करेंगे।

भस्म आरती
महाकाल मंदिर में रोज सुबह होने वाली भस्म आरती अपने आप में एक रहस्य है क्योंकि ये परंपरा कैसे शुरू हुई ये कोई नहीं जानता। कहते हैं पहले के समय में भगवन महाकाल की भस्मारती में मुर्दें की राख का उपयोग किया जाता है, लेकिन बाद में ये परंपरा बदल गई। 

यहां से गुजरती है कर्क रेखा
मीडिया रिपोटर्स की माने तो वैज्ञानिकों के अनुसार उज्जैन का महाकाल ही वह स्थान है जहां से कर्क रेखा गुजरती है, जिसके चलते ये शहर कभी खगोल गणना का मुख्य केंद्र हुआ करता था। साथ ही भूमध्य रेखा भी यहीं पर कर्क रेखा को काटती है। इसलिए महाकाल को पृथ्वी का सेंटर यानी केंद्र बिंदु भी माना जाता है।

एकमात्र दक्षिमुखी ज्योतिर्लिंग है महाकाल
जनकारी के अनुसार उज्जैन का महाकाल मंदिर एकमात्र दक्षिणमुखी ज्योतिर्लिंग हैं। अन्य कोई ज्योतिर्लिंग इस दिशा में नहीं है। एकमात्र महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग के दक्षिण मुखी होना कोई साधारण बात नहीं है। वास्तु में दक्षिण दिशा के स्वामी मृत्यु के देवता यमराज को माना गया है। मृत्यु से परे होने के कारण ही भगवान महाकाल को ये नाम दिया गया है।

साल में एक बार खुलता है नागचंद्रेश्वर मंदिर
उज्जैन का महाकाल मंदिर 3 तलों में बना हुआ है। सबसे ऊपरी तल पर नागचंद्रेश्वर मंदिर है, जो साल में सिर्फ एक बार नागपंचमी पर खुलता है। ऐसी मान्यता है कि तक्षक नाग आज भी गुप्त स्थान पर यहां रहता है। यहां जो प्रतिमा स्थापित है वो मराठा काल की है। इस प्रतिमा में भगवान शिव देवी पार्वती के साथ शेषनाग पर विराजित हैं।

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