ईआरसीपी की तुलना दूसरे राज्यों की योजनाओं से करना उचित नहीं है: Ashok Gehlot

जयपुर। राजस्थान जैसे प्रदेश में भविष्य की पेयजल एवं सिंचाई की जरूरतों को पूरा करने के लिए पूर्वी राजस्थान नहर परियोजना (ईआरसीपी) को राष्ट्रीय महत्व की परियोजना का दर्जा दिया जाना अत्यंत आवश्यक है। मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने रविवार को मुख्यमंत्री निवास पर इस परियोजना को लेकर अधिकारियों के साथ उच्च स्तरीय बैठक में संबोधित करते हुए ये बात कही।
उन्होंने कहा कि केन्द्र सरकार द्वारा इस परियोजना को लेकर लगाए जा रहे तकनीकी आक्षेप राजस्थान जैसे जटिल भौगोलिक परिस्थितियों वाले राज्य के लिए उपयुक्त नहीं हैं। ईआरसीपी की तुलना दूसरे राज्यों की योजनाओं से करना उचित नहीं है। बैठक में मुख्यमंत्री ने ईआरसीपी के तकनीकी पहलुओं पर विस्तृत चर्चा की।
मुख्यमंत्री ने कहा कि इस परियोजना की विस्तृत परियोजना रिपोर्ट (डीपीआर) वर्ष 2017 में केन्द्रीय जल आयोग को भेज दी गई थी। ईआरसीपी से प्रदेश के 13 जिलों में पेयजल उपलब्धता सुनिश्चित होगी। उन्होंने कहा कि प्रदेश के पूर्वी भाग में जहां पानी की विकट समस्या हैं वहां जल जीवन मिशन के मापदंडों के अनुसार 55 लीटर पेयजल प्रति व्यक्ति प्रति दिन उपलब्ध कराने के लिए ईआरसीपी बेहद अहम है।
37 हजार 247 करोड़ रूपए की इस परियोजना में 26 वृहद् एवं मध्यम सिंचाई परियोजनाओं के माध्यम से 0.8 लाख हैक्टेयर विद्यमान सिंचित क्षेत्रों का पुनरूद्धार तथा 2 लाख हैक्टेयर नए क्षेत्र में सिंचाई सुविधा उपलब्ध कराया जाना प्रस्तावित है। प्रदेश के 40 प्रतिशत भूभाग को लाभान्वित करने वाले इस प्रोजेक्ट को अभी तक राष्ट्रीय परियोजना घोषित नहीं किया गया है। इससे भविष्य में राजस्थान को गंभीर पेयजल संकट का सामना करना पड़ सकता है।
ऐसे में, केन्द्र सरकार को चाहिए कि राजस्थान जैसे सूखाग्रस्त राज्य को पेयजल संकट से बचाने के लिए ईआरसीपी को जल्द से जल्द राष्ट्रीय परियोजना घोषित करे। गहलोत ने कहा कि परियोजना की डीपीआर में सभी मापदंड केन्द्रीय जल आयोग की गाइडलाइन के अनुरूप ही रखे गए हैं। भारत सरकार द्वारा पूर्व में अन्य राज्यों की 16 बहुउद्देशीय योजनाओं को राष्ट्रीय परियोजना का दर्जा दिया गया है।